धर्म

लक्ष्मी पूजन करने की पद्धति एवं महत्व

डाॅ. जयंत आठवले।

कार्तिक अमावस्या को अर्थात लक्ष्मी पूजन के दिन सभी मंदिरों, दुकानों एवं हर घर में श्री लक्ष्मी पूजन किया जाता है । कार्तिक अमावस्या का दिन दीपावली त्यौहार का एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सामान्यतः अमावस्या का अशुुभ दिन माना जाता है, परंतु दीपावली की यह अमावस्या शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागिरी पूर्णिमा के समान ही कल्याणकारी एवं समृद्धि दर्शक है। इस दिन श्री लक्ष्मी पूजन के साथ ही अलक्ष्मी निःसारण भी किया जाता है। लक्ष्मी पूजन के दिन की जाने वाली कृतियों के पीछे का शास्त्र इस लेख के माध्यम से जानेंगे।

इतिहास –

लक्ष्मी पूजन के दिन श्री विष्णु ने लक्ष्मी सहित सभी देवताओं को बली के कारागृह से मुक्त किया था एवं तत्पश्चात उन सभी देवताओं ने क्षीरसागर में जाकर शयन किया ऐसी कथा है।

त्यौहार मनाने की पद्धति –
प्रातः काल मंगल स्नान करके देवता पूजन दोपहर को पार्वण, श्राद्ध एवं ब्राह्मण भोजन एवं प्रदोष काल में लता पल्लवों से सुशोभित किए हुए मंडप में लक्ष्मी, श्री विष्णु आदि देवता एवं कुबेर इनका पूजन, ऐसा लक्ष्मी पूजन के दिन की विधि है।

लक्ष्मी पूजन करते समय एक चौरंग पर (चौकी पर) अक्षत का अष्टदल कमल अथवा स्वास्तिक बनाकर उस पर लक्ष्मी जी की मूर्ति की स्थापना करते हैं। कुछ स्थानों पर कलश पर छोटी प्लेट रखकर उस पर लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करते हैं। लक्ष्मी के समीप ही कलश पर कुबेर की प्रतिमा रखी जाती है । तत्पश्चात लक्ष्मी आदि देवताओं को लौंग, इलाइची एवं शक्कर से तैयार किया गया गाय के दूध के खोवे का नैवेद्य, भोग लगाते हैं । धान, गुड, लाई, बताशा आदि पदार्थ लक्ष्मी जी को अर्पित करके फिर इष्ट मित्रों को बाँटते हैं, ब्राह्मणों एवं अन्य क्षुधा पीड़ित अर्थात भूखों को भोजन कराते हैं तथा रात्रि में जागरण किया जाता है।

लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक साहित्य उपलब्ध ना हो तो जितना उपलब्ध है उतने साहित्य में भावपूर्ण रीति से पूजा विधि करना चाहिए। बताशे आदि सामान न मिलने पर देवता को घी शक्कर, गुुड – शक्कर अथवा मीठे पदार्थ का नैवेद्य अर्थात भोग लगाना चाहिए।

लक्ष्मी किसके यहां निवास करती है? –

कार्तिक अमावस्या की रात्रि में जागरण किया जाता है । पुराणों में ऐसा बताया गया है कि कार्तिक अमावस्या की रात्रि को लक्ष्मी सर्वत्र संचार करती हैं एवं अपने निवास के लिए योग्य स्थान ढूंढती हैं । जहां स्वच्छता, सुंदरता एवं रसिकता दिखती है वहां तो वे आकर्षित होती ही हैं तथा जिस घर में चरित्रवान, कर्तव्य दक्ष, संयमी, धर्मनिष्ठ एवं ईश्वर भक्त, तथा क्षमाशील पुरुष एवं गुणवती, पतिव्रता स्त्रियां रहती हैं उस घर में निवास करना लक्ष्मी जी को अच्छा लगता है।

लक्ष्मीपूजन के दिन का महत्व –

सामान्यतः अमावस्या का दिन अशुभ दिन बतलाया गया है, परंतु यह अमावस्या इसका अपवाद है। यह दिन शुभ माना गया है, परंतु वह सभी कामों के लिए नहीं। इसलिए इस दिन को शुभ दिन की अपेक्षा आनंद का दिन कहना अधिक योग्य है।

लक्ष्मीदेवी से की जाने वाली प्रार्थना –
जमा खर्च के हिसाब की बही लक्ष्मी देवी के सामने रखकर यह प्रार्थना करनी चाहिए ‘हे माँ लक्ष्मी आपके आशीर्वाद से मिले हुए धन का उपयोग हमने सत् कार्य एवं ईश्वरीय कार्य के लिए किया है । उसका तालमेल करके (हिसाब करके) आपके सामने रखा है। इसमें आपकी सम्मति रहने दीजिए । आपसे हम कुछ भी छुपा नहीं सकते। यदि हमने आपका विनियोग योग्य प्रकार से नहीं किया तो आप हमारे पास से चली जाएंगी इसका मैं निरंतर ध्यान रखता हूं। इसलिए हे लक्ष्मी देवी मेरे खर्च को सम्मति देने के लिए भगवान से आप मेरा अनुरोध कीजिए क्योंकि आपके अनुरोध के बिना वे उसे मान्यता नहीं देंगे। अगले वर्ष भी हमारा कार्य अच्छी तरह पूर्ण होने दीजिए।

लक्ष्मीपूजन के दिन रात को झाड़ू  क्यों लगाते हैं?

महत्व –
गुणों का निर्माण किया जाए तो भी, यदि दोष नष्ट हों तभी गुणों का महत्व बढ़ता है। यहां लक्ष्मी प्राप्ति के लिए उपाय के साथ ही अलक्ष्मी का नाश भी किया जाना चाहिए, इसलिए इस दिन नई झाड़ू खरीदी जाती है उसे लक्ष्मी कहते हैं।

कृति –
मध्य रात्रि को नई झाड़ू से घर का कचरा सूप में भरकर उसे बाहर डालना चाहिए, ऐसा बताया गया है। इसे अलक्ष्मी (कचरा, दरिद्रता) निःसारण कहते हैं। सामान्यतः कभी भी रात को घर बुहारना एवं कचरा बाहर डालना जैसी कृति नहीं की जाती । केवल इसी दिन यह करना चाहिए। कचरा निकालते समय सूप बजाकर भी अलक्ष्मी को निकाला जाता है।

लक्ष्मी पूजन करते समय अक्षत का अष्टदल कमल अथवा स्वास्तिक क्यों बनाना चाहिए?

कार्तिक अमावस्या के दिन किए जाने वाले श्री लक्ष्मी पूजन के समय अक्षत से बना हुआ अष्टदल कमल अथवा स्वस्तिक पर ही श्री लक्ष्मी की स्थापना की जाती है। सभी देवताओं की पूजा करते समय उन्हें अक्षत का आसन दिया जाता है । अन्य देवताओं की तुलना में श्री लक्ष्मी देवी का तत्व अक्षत में 5% अधिक प्रमाण में आकृष्ट होता है क्योंकि अक्षत में श्री लक्ष्मी के प्रत्यक्ष सगुण, गुणात्मक अर्थात संपन्नता की लहरियां आकृष्ट करने की क्षमता होती है। अक्षत में तारक एवं मारक लहरियां ग्रहण करके उनका संचारण करने की क्षमता होने से लक्ष्मी जी की पूजा करते समय अक्षत का अष्टदल कमल अथवा स्वास्तिक बनाते हैं। स्वास्तिक में निर्गुण तत्व जागृत करने की क्षमता होने के कारण श्री लक्ष्मी के आसन के रूप में स्वास्तिक बनाना चाहिए।

लक्ष्मी चंचल है ऐसा कहने का कारण –
किसी देवता की उपासना की जाए तो उस देवता का तत्व उपासक के पास आता है एवं उसके अनुसार लक्षण भी दिखते हैं । उदाहरणार्थ श्री लक्ष्मी की उपासना करने से धन प्राप्ति होती है । उपासना कम हुई, अहम जागृत हुआ तो देवता का तत्व उपासक को छोड़कर चला जाता है, इन्हीं कारणों से श्री लक्ष्मी उपासक को छोड़कर जाती हैं। तब स्वयं की गलती मान्य न करके व्यक्ति कहता है लक्ष्मी चंचल है । यहां ध्यान में लेने लायक सूत्र यह है कि लक्ष्मी चंचल होती तो उन्होंने श्री विष्णु के चरण कब के छोड़ दिए होते।

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button