पटना । कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द किए जाने के खिलाफ आज भाकपा-माले पटना की सड़कों पर उतरा. मोदी शासन में लोकतंत्र पर जारी हमलों की अगली कड़ी में राहुल गांधी की कल आनन-फानन में लोकसभा सदस्यता से बर्खास्तगी के खिलाफ कारगिल चौक पर आयोजित प्रतिरोध सभा में माले के कई वरिष्ठ नेता, विधायक, कार्यकर्ता और नागरिक समुदाय के लोग जुटे.
इस बीच माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने राहुल गांधी की सदस्यता से बर्खास्तगी की चौंकाने वाली घटना पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिकाअर्जुन खड़गे को पत्र लिखकर लोकतंत्र पर इस बेशर्म हमले के खिलाफ व्यापक विपक्षी एकता की अपील की.
प्रतिरोध सभा को भाकपा-माले पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, राजाराम सिंह, वरिष्ठ नेता केडी यादव, माले विधायक दल नेता महबूब आलम, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, विधायक सुदामा प्रसाद, विधायक गोपाल रविदास, विधायक मनोज मंजिल, विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, अरूण सिंह, खेग्रामस के राज्य सचिव शत्रुघ्न सहनी, एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा, ऐपवा की अनीता सिन्हा, पत्रकार पुष्पराज आदि ने संबोधित किया. मौके पर ऐपवा की शशि यादव, सरोज चौबे, जितेन्द्र कुमार, मुर्तजा अली, संजय यादव सहित कई लोग उपस्थित थे.
प्रतिरोध सभा में माले नेताओं ने कहा कि अडाणी घोटाले में घिरी मोदी सरकार के दबाव में राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म की गई है. संसदीय परंपरा में यह पहली दफा है जब सत्ता पक्ष ही संसद नहीं चलने दे रहा है. उन्होंने कहा कि संसद में विपक्ष अडाणी घोटाले की जेपीसी जांच की लगातार मांग उठा रहा है. अडाणी को बचाने में लगी मोदी सरकार ने उलटे राहुल गांधी की सदस्यता ही खत्म करवा दी. यह देश के लोकतंत्र का मजाक है.
नेताओं ने कहा कि 23 मार्च को कथित मोदी मानहानि मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सजा को 30 दिनों तक सस्पेंड रखा गया था और राहुल गांधी को उच्चतर न्यायालय में अपील का अधिकार दिया गया था. कोर्ट की इस बात को खारिज करते हुए एक दिन बाद ही आनन-फानन में उनको लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. इससे जाहिर होता है कि मोदी सरकार विपक्ष से कितनी भयभीत है. यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय है.
भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन में न्यायालयों से लेकर ईडी-सीबीआई सबका दुरूपयोग कर रही है. दूसरी ओर, देश में महंगाई-बेरोजगारी अपने चरम पर है. लोगों में गुस्सा है. देश के लोकतंत्र और आम लोगों के जीवन पर जब-जब संकट आया है, बिहार की धरती से प्रतिरोध की आंधी उठ खड़ी हुई है. एक बार फिर बिहार देश के इस निरंकुश-फासीवादी शासन माॅडल को शिकस्त देगा और देश में लोकतंत्र की पुनर्बहाली का रास्ता खोलेगा.
समय की मांग है कि इस निरंकुश आपातकाल के खिलाफ पूरा विपक्ष अपनी मजबूत एकजुटता प्रदर्शित करे और साहस के साथ आगे बढ़े ताकि देश के लोकतंत्र पर मंडराते अब तक के सबसे गंभीर खतरे का सफलतापूर्वक सामना कर सके.