
चुन्नु सिंह
साहिबगंज , झारखंड 04.05.2025
राजमहल की धरती के नीचे छिपे करोड़ों साल पुराने भूवैज्ञानिक और पुरापाषाणकालीन रहस्यों से पर्दा उठने लगा है। सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची के भूविज्ञान विभाग की एक टीम ने हाल ही में साहिबगंज जिले में स्थित राजमहल बेसाल्ट क्षेत्र का व्यापक अध्ययन किया, जिसमें दुर्लभ जीवाश्मों और स्तंभकार बेसाल्ट संरचनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया।
प्रोफेसर डॉ. रंजीत कुमार सिंह, डॉ. सोमेश सेनगुप्ता और डॉ. मेल्विन ए. एक्का के मार्गदर्शन में छात्रों ने न केवल ज्वालामुखी से बने बेसाल्ट स्तंभों की बनावट और लावा प्रवाह की गतिशीलता का अध्ययन किया, बल्कि इंटरट्रैपियन परतों में छिपे उन जीवाश्मों को भी खोजा, जो क्रेटेशियस काल की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की गवाही देते हैं – एक ऐसा युग जब धरती पर डायनासोर घूमते थे और फूलों वाले पौधे पहली बार विकसित हो रहे थे।
शोधकर्ताओं ने पाया कि यह क्षेत्र सिर्फ भूगर्भीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अध्ययन न केवल विद्यार्थियों के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण का माध्यम बना, बल्कि पृथ्वी के जैविक इतिहास को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी साबित हुआ।
शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर संरक्षण की आवश्यकता पर भी बल दिया है। उनका मानना है कि राजमहल की यह भूवैज्ञानिक विरासत न सिर्फ वैज्ञानिक शोध के लिए जरूरी है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए यह एक सीख और चेतावनी भी है कि प्रकृति के इन अनमोल दस्तावेजों को संजो कर रखना हमारी जिम्मेदारी है।