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यह हिंदुस्तान है यहां हिंदी दिखता कहां है …🤔

यह हिंदुस्तान है ….???……हिंदी दिखता कहां है …..🤔

डॉक्टर राजीव रंजन , फिजियोथैरेपिस्ट , पटना  की कलम से….

मैं अभी दिल्ली हवाई अड्डे पर हूं। यहां बहुत सारे अंग्रेजी अखबार तो बड़ी सहजता से दिख गए, पर हिन्दी अखबार बहुत खोजने पर मिला, वह भी केवल नवभारत टाइम्स!

हवाई अड्डे पर लिखी सूचनाओं में तो अंग्रेजी के नीचे छोटे अक्षरों में हिन्दी को जगह देकर खानापूर्ति कर दी गई है लेकिन पूरे हवाई अड्डे पर किसी भी स्टोर, किसी भी दुकान, किसी भी रेस्त्रां के मेन्यू पर हिन्दी मुझे कहीं भी नहीं दिखी।

कृपया ध्यान रखें कि मैं अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की नहीं, बल्कि घरेलू हवाई अड्डे की हालत बता रहा हूं, जहां मुझे 99% से अधिक यात्री भारतीय दिखाई दे रहे हैं और उनमें भी शायद 70-80% हिन्दी भाषी या अंग्रेजी ठीक से न जानने वाले होंगे।

मैं जब भी भाषाओं की बात करता हूं, तो बहुत सारे लोग मुझे बताते हैं कि जीवन में आगे बढ़ने, अच्छा करियर बनाने और सफलता पाने के लिए अंग्रेजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। मैं उस बात से सहमत हूं लेकिन कोई मुझे आज तक यह नहीं बता पाया कि अपने दैनिक जीवन के हर छोटे बड़े काम में भी अंग्रेजी का बोझ लादकर घूमना क्यों जरूरी है?

एक ओर भारत की राजधानी के घरेलू हवाई अड्डे पर ही हिन्दी का यह हाल है और दूसरी ओर कुछ ही माह पहले यह ढिंढोरा पीटा जा रहा था कि अब हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में जगह मिल गई है। मुझे समझ नहीं आता कि मानसिक गुलामी से पीड़ित जो समाज अपने घर और अपने देश में ही अपनी भाषा को खुद मिटा रहा है, उसकी भाषा को अपनी सूची में जोड़ने की गलती संयुक्त राष्ट्र संघ ने क्यों की।

जो लोग स्वयं अपनी भाषा को दुत्कारकर अंग्रेजी की गुलामी कर रहे हैं, उनकी भाषा को लुप्तप्राय भाषाओं की श्रेणी में डालना चाहिए था, न कि आधिकारिक भाषाओं की सूची में

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