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भागलपुर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच विषहरी पूजा शांतिपूर्वक संपन्न

रिपोर्ट ~ अहद मदनी

संपादन ~ चुन्नू सिंह

भागलपुर (बिहार)

अंग प्रदेश की प्रसिद्ध विषहरी पूजा संपन्न हो गई। सम्पूर्ण भागलपुर जिले में विषहरी पूजा धूमधाम  से मनाई गई । कलश विसर्जन के बाद शाम में मां की प्रतिमा का विसर्जन किया गया। चंपानगर स्थित मां मनसा देवी के मुख्य मंदिर से देर रात विषहरी मां की प्रतिमा कड़ी सुरक्षा के बीच विसर्जित की गई। इस दौरान काफी संख्या में श्रद्धालुओं के साथ पुलिस बल भी तैनात थी। चंपानगर मनसा देवी मंदिर से प्रतिमा को श्रद्धालुओं ने अपने कंधे पर लेकर चंपा नदी में विसर्जन किया। चंपानगर में मनसा देवी का मुख्य मंदिर है, जहां हर साल 17 अगस्त को विषहरी पूजा की जाती है।अंग की लोकगाथा के मुताबिक बाला-बिहुला-विषहरी पूजा की शुरुआत चंपा नगरी से हुई है । यहीं पर माता विषहरी को सती बिहुला के कारण ख्याति प्राप्त हुई। शंकर भगवान की दत्तक पुत्री विषहरी माता उनकी तरह ही ख्याति प्राप्त करना चाहती थी और भगवान शंकर से अपनी मंशा जाहिर की।भगवान शंकर ने उन्हें बताया कि अंग प्रदेश में मेरा एक भक्त चांदो सौदागर है। अगर वो तुम्हारी पूजा श्रद्धा भाव से कर लेता है, तो तुम्हें ख्याति मिल जाएगी । विषहरी ने शिव भक्त चांदो सौदागर से अपनी पूजा करने के लिए जिद्द की। लेकिन सौदागर ने पूजा करने से मना किया तो विषहरी ने सर्प डंस से उसके परिवार का नाश करना शुरू किया।सौदागर के अंतिम पुत्र बाला लखेन्द्र की शादी बिहुला से हुई। शादी के दिन एक लोहे का घर बनाया गया, जिसमें सुरक्षा को लेकर हवा आने की सुई भर का छेद था। इसके बावजूद विषहरी ने किसी तरह महल के अंदर प्रवेश कर बाला लखेन्द्र को डंस लिया। मृत बाला लखेन्द्र को जीवित कराने के लिए सती बिहुला केले के थम पर सवार होकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक निकल पड़ी थी और उससे जीवित कर वापस लाया था।उसके बाद से ही चांदो सौदागर ने बाएं हाथ से विषहरी की पूजा करना शुरू की।

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