
चुन्नू सिंह
भागलपुर
शनिवार 17 फरवरी को भागलपुर जिले के विभिन्न प्रखंडों में ठाड़ी व्रत की शुरुआत हो गई । व्रतियों ने नहा धो कर खर से बने घर के भीतर पूजा अर्चना किया और बिना सिलाई वाले एक सफेद वस्त्र को अपने शरीर पर धारण किया । उसके गांव के तमाम देवी देवता के स्थानों पर घूम घूम कर पूजा अर्चना की । घर और गांव में पूजा स्थानों पर पूजा के बाद गंगा या स्थानीय नदी की दूरी के अनुसार व्रती घर से समय से गंगा या नदी में जाकर सूर्य को अरग देने के लिए निकल जाते हैं । इस दौरान उनके साथ सामान्य ढोल के साथ मिट्टी के ढोल , झाल लिए भक्त और व्रती खूब भजन और कीर्तन करते हुए ईश्वर में समा जाते हैं ।
इस दौरान आदिवासी परंपरा जैसी नृत्य भी करते हैं । रात को वो तब तक खड़े रहते हैं जब तक तारा नही दिख जाती । रविवार को सुबह भी यही प्रक्रिया शुरू होती है । व्रती पुनः खर से बने घर में हीं पूजा अर्चना♦ कर देवी देवता को पान प्रसाद चढ़ा कर पुनः गांव के देवी देवता के स्थानों पर पूजा के लिए निकल पड़ते हैं । और उसके बाद देर शाम को पुनः सूर्य भगवान को अरग देते हैं । रविवार को अरग देने के बाद ही व्रती बैठते हैं । ठाड़ी पर्व मूलतः छठ पूजा जैसी ही है और ये सूर्य उपासना की पर्व है ।
ठाड़ी पर्व माघ महीने के अमावस्या के बाद प्रथम रविवार को मनाया जाता है । इसकी पहली अरग शनिवार को और दूसरी अरग रविवार को सूर्य भगवान को अर्पित की जाती है । अरग से पूर्व छठ पूजा जैसी ही इस पर्व में कद्दू भात और खरना की भी परंपरा है । पहले ये पर्व बिहार में खरवार आदिवासी समाज द्वारा हीं केवल मनाई जाती थी । परन्तु अब इस पर्व को पूरे भागलपुर जिले में विभिन्न जातियों द्वारा मनाई जाने लगी है । अन्य हिंदू पर्वों की तरह इस पर्व की भी ख्याति नित्य प्रति दिन बढ़ती जा रही है ।