पटना । आज बिहार के चतुर्थ कृषि रोड मैप के शुभारंभ के अवसर पर आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। राष्ट्रपति के रूप में भले ही यह राज्य की मेरी पहली यात्रा है, मैं बिहार के लोगों और यहां की संस्कृति से भली-भांति परिचित हूं। पड़ोसी राज्य झारखंड के राज्यपाल पद के दायित्वों का करीब छह वर्षों तक निर्वहन करते हुए मैंने बिहार की संस्कृति और जीवन-शैली को करीब से जाना और महसूस किया है। मेरा गृह राज्य ओडिशा भी ऐतिहासिक रूप से बिहार से जुड़ा हुआ है। इसलिए मुझे लगता है कि मैं भी अपने-आप को बिहारी कह सकती हूं।
कृषि बिहार की लोक-संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। बटोहिया और बिदेसिया से लेकर कटनी और रोपनी गीतों तक की बिहार की लोक-संस्कृति और साहित्य की यात्रा ने पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाई है। मैंने सूरीनाम की अपनी यात्रा के दौरान वहां पर पुरातन बिहार की झलक देखी। विशाल भौगोलिक दूरी और अलग-अलग टाइम जोन में होने के बावजूद बिहार से गए लोगों ने जहां एक ओर अपनी संस्कृति और परंपरा को संजोए रखा है वहीं दूसरी ओर स्थानीयता में भी रच-बस गए हैं।
बिहार की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। हम सब जानते हैं कि मानव सभ्यता के विकास और कृषि के बीच घनिष्ठ संबंध रहा है। कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है। कृषि और संबद्ध क्षेत्र में न केवल राज्य का लगभग आधा कार्यबल लगा हुआ है बल्कि राज्य जीडीपी में भी इसका अहम योगदान है। इस प्रदेश की उन्नति के लिए कृषि क्षेत्र का सर्वांगीण विकास अत्यंत आवश्यक है। यह प्रसन्नता का विषय है कि बिहार सरकार वर्ष 2008 से ही कृषि रोड मैप का क्रियान्वयन कर रही है।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि पिछले तीन कृषि रोड मैपों के क्रियान्वयन के फलस्वरूप राज्य में धान, गेहूं और मक्का की उत्पादकता लगभग दुगनी हो गई है। साथ ही बिहार मशरूम, शहद, मखाना और मछली उत्पादन में भी अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया है।
चतुर्थ कृषि रोड मैप का शुभारंभ इस प्रयास को और आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। मुझे यह बताया गया है कि इस कृषि रोड मैप के अंतर्गत आगामी पांच वर्षों में फसलों के विविधिकरण, बेहतर सिंचाई सुविधा, भूमि और जल संरक्षण, बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता, जलवायु अनुकूल कृषि, फसल अवशेष प्रबंधन, पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, भंडारण की सुविधा का विकास जैसे विषयों पर बल दिया जाएगा।
बिहार के किसान भाई-बहन खेती में नए-नए प्रयोगों को आजमाने और अपनाने के लिए जाने जाते हैं। यही वजह है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एक अर्थशास्त्री ने नालंदा के किसानों को “greater than scientists” कहा था। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि आधुनिक पद्धति को अपनाते हुए भी यहां के किसानों ने कृषि के परंपरागत तरीकों और अनाज की क़िस्मों को बचाए रखा है। यह आधुनिकता के साथ परंपरा के सामंजस्य का अच्छा उदाहरण है। शायद इसी कृषि संस्कृति को पहचान कर वर्ष 1905 में भारत का पहला कृषि अनुसंधान केंद्र बिहार के पूसा नामक जगह पर स्थापित किया गया था।
आज जैविक उत्पादों की मांग देश-विदेश में तेजी से बढ़ रही है। बिहार के किसान भाई-बहनों को इसका लाभ उठाना चाहिए। जैविक खेती एक ओर जहां कृषि की लागत को कम करने और पर्यावरण संरक्षण में सहायक है वहीं दूसरी ओर यह किसानों की आय को बढ़ाने और लोगों को पोषण युक्त भोजन उपलब्ध कराने में भी सक्षम है। मुझे खुशी है कि बिहार सरकार ने जैविक खेती के लिए गंगा किनारे के जिलों में जैविक कोरिडोर बनाया है।
जैविक कृषि और पर्यावरण संरक्षण में खेती और पशुपालन के बीच एक-दूसरे को लाभान्वित करने का पारस्परिक संबंध बहुत लाभकारी है। खेती के अपशिष्ट और खर-पतवार पशुओं के लिए उत्तम चारा होते हैं। पशुओं का गोबर जैविक खाद के काम आता है। बिहार में अधिकांश किसान सीमांत किसान हैं। उनके लिए आधुनिक यंत्रों का उपयोग आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक नहीं होता है। अतः कृषि और पशुपालन का एक दूसरे के पूरक के रूप में प्रयोग किसानों को आर्थिक रूप से सबल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। यह पूरी मानवता के अस्तित्व के लिए संकट है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब और वंचित लोगों पर पड़ता है। मुझे बताया गया है कि हाल के वर्षों में बिहार में बहुत कम बारिश हुई है। बिहार एक जल-सम्पन्न राज्य माना जाता रहा है, नदियां और तालाब इस राज्य की पहचान रही हैं। इस पहचान को बनाए रखने के लिए जल संरक्षण पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। मेरी राय में जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में Climate Resilient Agriculture महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वर्तमान कृषि pattern में बदलाव ला कर bio-diversity को बढ़ावा दिया जा सकता है, जल स्रोतों का दोहन कम किया जा सकता है, मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण किया जा सकता है, और सबसे बढ़कर लोगों की थाली में संतुलित भोजन पहुंचाया जा सकता है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि बिहार की एक प्रमुख फसल मक्के से ethanol का उत्पादन किया जा रहा है। Fossil fuel पर निर्भरता को कम करने, पर्यावरण संरक्षण और देश की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
सब्जियों और फलों का उत्पादन भी आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक हो सकता है। बिहार अनानास, आम, केला, अमरूद और लीची का प्रमुख उत्पादक राज्य है। यहां पर गोभी, बैंगन, आलू, प्याज जैसी सब्जियाँ भी प्रचुर मात्रा में उगाई जाती हैं। बिहार के मखाना, कतरनी चावल, मर्चा धान, जरदालू आम, शाही लीची और मगही पान को GI टैग मिला हुआ है। लेकिन सब्जियों और फलों के बड़े पैमाने पर उत्पादन में भंडारण, परिवहन और बाजार जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। उचित भंडारण, सस्ती और विश्वसनीय परिवहन व्यवस्था और व्यापक बाज़ार उपलब्ध करा कर फलों और सब्जियों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। मुझे खुशी है कि चतुर्थ कृषि रोड मैप में processing units बनाने, mega food park स्थापित करने, और export infrastructure विकसित करने जैसे प्रावधान हैं।
बिहार भगवान बुद्ध और अशोक की धरती है। उन्होंने सम्पूर्ण मानवता को शांति और सद्भाव का पाठ पढ़ाया है। आप इस पावन धरती के वासी हैं इसलिए आपसे यह अपेक्षा की जाती है कि आप एक ऐसे समाज का आदर्श प्रस्तुत करें जिसमें द्वेष और कलह की कोई गुंजाइश न हो।
विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इस प्रदेश का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन इस सपने को सच्चाई में बदलने के लिए हमें मानव-निर्मित संकीर्णताओं से बाहर निकलना होगा। बिहार को एक विकसित राज्य बनाने के लिए समेकित विकास के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राज्य के नीति-निर्माताओं और जनता को बिहार की प्रगति के लिए एक रोड मैप निर्धारित करना होगा और उस पर चलना होगा। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि कृषि रोड मैप का क्रियान्वयन किया जा रहा है। मुझे और अधिक खुशी होगी जब बिहार विकास के हर मानक पर रोड मैप बनाकर लगातार प्रगति के पथ पर बढ़ता दिखाई दे – चाहे वह स्वास्थ्य हो, शिक्षा हो, प्रति व्यक्ति आय हो या सबसे बढ़कर Happiness Index हो।
अंत में, मैं आप सब को नवरात्रि, दुर्गा पूजा और दशहरा की बधाई देती हूं। मां दुर्गा की कृपा सदैव बिहार और बिहारवासियों पर बनी रहे।