- अपने आवास पर पत्रकारो से बात चीत में खुद की तुलना महात्मा गांधी से की
- कहा, सार्वजनिक जीवन में तो लोगों ने गांधी का भी अपमान किया था।
पटना। बिहार की राजनीति में इन दिनों महात्मा गांधी की प्रासांगिकता बढ़ गई है। गांधी जी के शहादत दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जोर देते हुए कहा था कि हम बिहार की नई पीढ़ी को गांधी जी और उनके विचारों से अवगत करा रहे हैं। जदयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी महात्मा गांधी का हवाला देकर कह रहे हें कि सार्वजनिक जीनव में यदि उनका कोई अपमान करता है तो करता रहे। उन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। सार्वजनिक जीवन में लोगों महात्मा गांधी को भी अपमानित करने की कोशिश की थी। पिछले कुछ समय से उपेंद्र कुशवाहा पार्टी के अंदर मुखरता से अपनी बात कह रहे हैं, इसे लेकर पार्टी के अंदर उनके खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया भी हो रही है। यहां तक कि उनको पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखाये जाने की कवायद जदयू के अंदर चल रही है। उपेंद्र कुशवाहा भी अब खुलकर मैदान में उतरने के मूड में दिख रहे हैं। अपने आवास पर आयोजित प्रेस कांफ्रेस में उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि वह पार्टी से ऐसे नहीं जाएंगे बल्कि अपना हिस्सा लेकर जाएंगे। और उनको वही हिस्सा चाहिए जो कभी लालू यादव ने नीतीश कुमार नहीं दिया था और नीतीश कुमार गांधी मैदान में उनसे अलग होकर एक रैली करके अपने हिस्से की मांग की थी।
कुशवाहा ने जदयू में हिस्सेदारी से लेकर संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष व एमएलसी बनने पर खुलकर अपनी बात रखते हुये कहा कि राजनिति में तमाम पद जो है वो साधन है साध्य नहीं। पद हासिल करने का उद्देश्य दबे कुचले लोगों की सेवा करना है। कहा जा रहा है कि अब आप एमएलसी बन गये हैं तो नौकरी किजीये। संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष का पद देकर एक झुनझुना थमा दिया गया। एमएलसी बनाकर नीतीश कुमार ने हमें लॉलीपॉप थमा दिया। हमने तो राज्यसभा सदस्यता व केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ते हुए क्षण भर की देरी नहीं की तो एमएलसी या संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष कौन सी बड़ी चीज है. मुख्यमंत्री हमसे वापस ले लें।
उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि जब हमें जेडीयू संसदीय बोर्ड का जब अध्यक्ष बनाया गया था तो हमको भी लगता था कि पार्लियामेंट्री बोर्ड का जो दायित्व होता है उन दायित्वों को निर्वहन करने का अवसर मिलेगा। हम पार्टी के कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा कर पाएंगे। बाद में पता चला कि बोर्ड का जो अध्यक्ष मुझे बनाया गया यह सीधे तौर पर मेरे हाथ में एक झुनझुना थमा दिया गया। पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष जिस दिन मुझे बनाया गया, उस दिन पार्टी के संविधान में कुछ नहीं लिखा हुआ था। बाद में पार्टी के संविधान में संशोधन हुआ और लिखा गया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष व सदस्यों को मनोनीत करेंगे। पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्यों के मनोनयन का भी अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष को है। पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष को नहीं। संशोधन के बाद भी यही स्थिति है। हम तो पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष बन गए उसके बाद सदस्यों के मनोनयन भी हम नहीं कर सकते थे। ऐसे में झुनझुना नहीं तो और क्या मिला? संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष से आज तक कोई राय नहीं मांगी गई। टिकट बंटवारे में बोर्ड अद्यक्ष की बड़ी भूमिका होती है। लेकिन किसी भी समय हमशे राय नहीं ली गई। यह अलग बात है कि हमने ही कई दफे मुख्यमंत्री को राय दिया। लेकिन हमारी राय को खारिज कर दिया गया। हमारे सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
उपेन्द्र कुशवाहा ने आगे कहा कि हमारी बात अगर गलत होगी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष या मुख्यमंत्री खंडन कर सकते हैं। हमने एक बात सुझाव के रूप में दिया की राज्य स्तर पर एक्टिव नेता जोअति पिछड़ा समाज का हो उसे पार्टी में डिसीजन मेकिंग जगह पर रखी जाय। मंत्री एमएलए या सांसद हैं वह अपने क्षेत्र तक सीमित रहते हैं। कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अति पिछड़ा समाज का है वह उस जगह पर नहीं है। हमने कहा एक अति पिछड़ा समाज के व्यक्ति को राज्य स्तर पर रखिए ,राज्यसभा में भेजिए या एमएलसी बना दीजिए, ताकि अति पिछड़ा समाज से लीडरशिप उभर सके।