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राजमहल में फूटा प्रकृति प्रेम का बीज, पनपने लगा ‘बालम खीरा’ का सपना

कवि, शिक्षक और समाजसेवियों ने मिलकर लगाए औषधीय वृक्ष, दिया सेहत और पर्यावरण बचाने का संदेश

रिपोर्ट ~ चुन्नु सिंह 

राजमहल, 02 मई 2025 

जहाँ दुनिया रोज़ नए संकटों से जूझ रही है, वहीं राजमहल की धरती पर रविवार को उम्मीद का एक बीज रोपा गया — नाम है ‘बालम खीरा’, लेकिन मकसद है – जीवन को हीरा बनाना।

कवि गोपाल चंद्र मंडल और कैलाशपति मंडल ने आज एक ऐसा काम किया, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा असरदार था। इन्होंने मॉडल कॉलेज मुरली, राजमहल परिसर में कॉलेज के कर्मचारी प्रकाश महतो की मदद से बालम खीरा के पौधे लगाए – एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन जगहों पर। यह बीज आंध्रप्रदेश से लाया गया था, और अब यह राजमहल की मिट्टी में नई साँस ले रहा है।

कार्य की शुरुआत हुई पगली दुर्गा माँ मंदिर परिसर से – आस्था के आँगन में प्रकृति की पूजा। इसके बाद मॉडल कॉलेज और फिर कन्हैया स्थान मंदिर परिसर में पौधारोपण किया गया। लेकिन यह सिर्फ पेड़ लगाना नहीं था। यह एक संदेश था।

गोपाल मंडल ने बताया – “बालम खीरा सिर्फ एक पौधा नहीं, ये जड़ी-बूटी से भरा वरदान है। पेट के लिए इतना लाभकारी कि कहावत बन गई — ‘बालम खीरा, पेट को बनाए हीरा।’”

उन्होंने यह भी कहा, “बीमारियाँ पेट से शुरू होती हैं, और जब पेट स्वस्थ, तब तन-मन भी प्रसन्न। क्यों न हम ऐसे पेड़ लगाएं जो सिर्फ छाया न दें, बल्कि औषधि भी बनें।

कहा जाता है कि बालम खीरा का हर हिस्सा उपयोगी है – इसकी पत्तियाँ, जड़ें, फल तक। इससे किडनी, कैंसर, पाचन, जोड़ों के दर्द, और रोग प्रतिरोधक क्षमता जैसी समस्याओं का इलाज संभव है।

“धरती बचाओ, जीवन सजाओ” – यही सोच लेकर कवि मंडल ने आग्रह किया कि लोग इस वृक्ष को अपनी ज़मीन पर जगह दें – चाहे वह पहाड़ी हो, कंकरीली हो या बंजर।

कार्यक्रम में पर्यावरणविद एवं कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रणजीत कुमार सिंह भी शामिल हुए। उन्होंने कहा – “बरसात आने वाली है, हम सब संकल्प लें कि कम से कम पाँच पेड़ लगाएं और जल का संरक्षण करें। यही सच्ची सेवा है।”

इस वृक्षारोपण में सिर्फ पौधे नहीं रोपे गए, बल्कि एक सोच बोई गई – कि पेड़ लगाने का काम सिर्फ वन विभाग का नहीं, बल्कि हर इंसान की ज़िम्मेदारी है। और जब कवि, शिक्षक, समाजसेवी एक साथ पेड़ लगाएं, तो वह सिर्फ हरियाली नहीं, एक हरित क्रांति की शुरुआत होती है।

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