पटना। जदयू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने शनिवार को बयान जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सूबे के सर्वांगीण समृद्धि को सुनिश्चित करने हेतु सामाजिक न्याय के साथ विकास की अवधारणा को आत्मसात करते हुए अपने 18 वर्षों के सुशासन काल के दौरान जितने भी युगान्तकारी फैसले लिए वह स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक का सबसे अनूठा और अद्वितीय उदारहण है। किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति का सपना तभी संभव हो सकता है जब समाज का हर वर्ग सशक्त और सामर्थ्यवान बने। मुख्यमंत्री ने इसी अवधारणा का अनुकरण करते हुए सबसे पहले समाज के उन वर्गों के बारे में सोचा जो आज तक विभिन्न कारणों से हाशिए पर थे।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2005 में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभालने के उपरांत नीतीश कुमार ने एक वर्ष के भीतर ही वर्ष 2006 में अतिपिछड़ा समाज को सशक्त बनाने एवं उनके राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज में आरक्षण का प्रावधान किया और इसके एक वर्ष बाद यानी 2007 में नगर निकाय चुनाव में भी अतिपिछड़ा के लिए आरक्षण लागू किया गया। पिछड़ा-अतिपिछड़ा कल्याण का जो बजट 2008-09 में 42 करोड़ 17 लाख 40 हजार रु. था, वह 2022-23 में बढ़कर 18 अरब 77 करोड़ 86 लाख रु. का हो चुका है। अतिपिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए प्रत्येक जिले में ‘कल्याण छात्रावास’ व्यवस्था की गई एवं सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना के तहत बीपीएससी एवं यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा पास करने पर क्रमश: 50 हजार एवं एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। रोजगार के अवसर देने के उदेश्य् से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के साथ-साथ अतिपिछड़ों को भी 10 लाख की मदद की व्यवस्था सुनिश्चित की गई, इसमें 5 लाख अनुदान और 5 लाख ब्याजमुक्त ऋण है। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री वास स्थल क्रय सहायता योजना के तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग को भूमि क्रय करने हेतु प्रति लाभार्थी 60,000 रुपये की सहायता राशि भी प्रदान की जाती है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि सामाजिक कारणों से परिवर्तन के दौर में पीछे छूट चुका शोषित समाज आज अपने पंचायत का मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद, अध्यक्ष और मेयर बनकर समाज को सशक्त बनाने और क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
श्री कुशवाहा ने आगे कहा कि प्रदेश की महिलाओं को भी राजनीतिक रूप से सक्षम बनाने एवं समाज के उत्थान में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायती राज चुनाव में 50 फ़ीसदी का आरक्षण लागू करने का क्रांतिकारी और साहसिक निर्णय लिया। महिलाओं के हित में इतना बड़ा फैसला किसी भी किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने इससे पहले नहीं लिया था, हमारे नेता नीतीश कुमार के इस फैसले के बाद देश के कई राज्यों ने इस निर्णय को अपने-अपने प्रदेश में लागू किया। महिलाओं को सरकारी नौकरियों में भी 35 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिहार पहला राज्य बना। शराबबंदी, दहेजबंदी, बालविवाहबंदी, कन्या-सुरक्षा जैसे समाज-सुधार अभियानों के कारण महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आया है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या 17.5 प्रतिशत बढ़ी और आधी आबादी पर घरेलू हिंसा के मामले में 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। साथ ही मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना अंतर्गत सिविल सेवा प्रोत्साहन राशि के तहत बीपीएससी एवं यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण सभी महिला अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार की तैयारी हेतु क्रमश: 50,000 तथा 1,00,000 रु. की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत महिला आवेदकों को मात्र 1 प्रतिशत सरल ब्याज की दर से ऋण उपलब्ध कराई जाती है। महिलाओं आत्मनिर्भर बनाने हेतु उद्यम लगाने के लिए 5 लाख रु. तक अनुदान एवं 5 लाख रु. तक ब्याजमुक्त ऋण की भी व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाती है। सामाजिक परिवर्तन व महिला सशक्तीकरण के दृष्टिकोण से आज हमारा बिहार सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सामने सामाजिक न्याय का श्रेष्ठतर उदारहण पेश कर रहा है और साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सामाजिक न्याय की परिकल्पना को हकीकत में चरितार्थ करते हुए बिहार विकास की ऐतिहासिक और अमिट पटकथा भी लिख रहा है।