चुन्नु सिंह
साहिबगंज (झारखंड) : 2 फरवरी 2025
विश्व आर्द्र भूमि दिवस के अवसर पर सकरुगढ़ टैंक स्थित तालाब किनारे वृक्षारोपण और जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आर्द्र भूमि के संरक्षण और प्राकृतिक जल स्रोतों की महत्ता को लेकर लोगों को जागरूक करना था।
छात्र-छात्राओं ने लगाए नारे, जागरूकता फैलाई
कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने नारे लगाकर जनसाधारण को आर्द्र भूमि के संरक्षण का संदेश दिया। इस दौरान फलदार पौधे लगाए गए, ताकि पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखा जा सके।
इस अवसर पर डॉ. रणजीत कुमार सिंह (भू-वैज्ञानिक), अशोक कुमार चौधरी, कौशल किशोर ओझा, विमल कुमार ओझा, रवि कुमार तांती, अतुल कुमार दुबे, आदित्य कुमार ठाकुर, पवन कुमार सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने का संकल्प
कार्यक्रम में डॉ. रणजीत कुमार सिंह ने कहा कि प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने लोगों से प्लास्टिक और अन्य कचरे को जल स्रोतों में नहीं फेंकने, तालाबों और झीलों के आसपास अवैध निर्माण न करने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की अपील की।
उन्होंने कहा, “इतिहास गवाह है कि सभी महान सभ्यताएं नदियों और जल स्रोतों के किनारे ही बसी हैं। यदि हम इन प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका गंभीर नुकसान उठाना पड़ेगा।”
जलीय जीवों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आर्द्रभूमि आवश्यक
डॉ. अक्षय कुमार वर्मा (वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ) ने बताया कि मछली, हंस, बत्तख, किंगफिशर, ऊदबिलाव, बीवर और यहां तक कि बाघ भी आर्द्र भूमि पर निर्भर करते हैं। अगर आर्द्र भूमि नष्ट हो गई, तो बाढ़ की समस्या बढ़ेगी, जीव-जंतु विलुप्त हो सकते हैं और खाद्य आपूर्ति पर असर पड़ेगा।
उन्होंने आगाह किया कि कीटनाशकों, औद्योगिक कचरे और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण आर्द्र भूमि संकट में है। यदि हमने इसे संरक्षित नहीं किया, तो शहरों में बाढ़ नियंत्रण पर अधिक खर्च करना पड़ेगा, जलीय जीवों का जीवन संकट में आ जाएगा और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ जाएगा।
नवीकरणीय ऊर्जा और प्लास्टिक मुक्त समाज की अपील
विशेषज्ञों ने नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने और प्लास्टिक के उपयोग में कटौती करने की जरूरत पर बल दिया, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ जल, स्वच्छ नदियां और एक अनुकूल पर्यावरण दे सकें।
विश्व आर्द्रभूमि दिवस का महत्व
गौरतलब है कि विश्व आर्द्र भूमि दिवस पहली बार 2 फरवरी 1997 को मनाया गया था। इसका उद्देश्य दलदली भूमि, नदियां , झीलें, मैंग्रोव और अन्य जल निकायों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। इन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और जलचरों के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए बेहद जरूरी है।
सामूहिक प्रयास से ही होगा संरक्षण संभव
कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित लोगों ने जल स्रोतों को बचाने, आर्द्र भूमि पुनर्जीवित करने और प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प लिया। डॉ. रणजीत कुमार सिंह, अशोक कुमार चौधरी और जिला गंगा समिति के अन्य सदस्य भी इस पहल में शामिल हुए।