पटना। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (से) के राष्ट्रीय राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता श्याम सुन्दर शरण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि विगत 13 जून को हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार सुमन ने बिहार सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसका कारण आप सबों के सामने जगजाहिर हो चुका है। पार्टी के विलय का दवाब बनाया जाने लगा और स्पष्ट रुप से अल्टीमेटम दिया गया मुख्यमंत्री के द्वारा तब हमारे नेता एवं पार्टी के सभी साथियों ने निर्णय लिया कि अब हमको अपने अस्तित्व और गरीबों के स्वाभिमान की रक्षा के लिए मंत्री पद की बलि देनी होगी जो हमारे नेता ने बेहिचक दे दिया।
यहाँ तक हम लोगों को लगा कि चलिए ठीक है कोई बात नहीं जैसे माले,सीपीआई, सीपीएम बाहर से सरकार को समर्थन दे रही है हम भी महागठबंधन का साथ देते रहेंगे। लेकिन उसी शाम को जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का बयान आता है कि हां हमने विलय का दवाब बनाया और साथ ही कहा कि छोटी छोटी दुकान चलाने का क्या मतलब। मित्रों यह भारतीय लोकतंत्र पर एक बड़ा कुठाराघात है और हम तो चाहेंगे कि चुनाव आयोग इस पर ललन सिंह को नोटिस देकर पूछे और डांट लगाए इस गैर जिम्मेवार बयान के लिए।
उन्होंने कहा कि दरअसल दिक्कत ललन सिंह को छोटी छोटी पार्टी से नहीं गरीब दलित, अति पिछड़े वर्ग से कोई नेता न पैदा हो जाए इसका डर है। हमारी पार्टी को इस पर घोर आपत्ति है। साथ में तेजस्वी प्रसाद भी उनकी हां में हां मिला रहे थे जो आश्चर्यजनक तो नहीं लेकिन घोर आपत्तिजनक जरूर है। उनके अहंकारी बयानों से स्पष्ट है कि महागठबंधन को दलित, अति पिछड़े वर्ग के लोगों से कोई मतलब नहीं और उनके वोट की कोई जरूरत नहीं है।
दूसरी तरफ निश्चित रूप से तथाकथित बड़ी दुकान 43 विधायकों की पार्टी के राष्ट्रीय रजनीगंधा अध्यक्ष के दोहरे चरित्र की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा।
मित्रों यह सच है कि ललन सिंह को राजनीति में हाथ पैर मारने के बाद जब मुकम्मल जगह नहीं मिला तो बेरोजगारी दूर करने के लिए बीच के दिनों में वो राजनीति दिवंगत नेत्री भूतपूर्व मंत्री सुधा श्रीवास्तव के मैनेजर के रूप में काम करने लगे और उनके कमर्शियल कंपलेक्स का भाड़ा भी वसूलने का काम उन्होंने किया। तब वहीं से उनका राजनीतिक ऑडियोलॉजी पूरी तरह से बदल गया और वह कंप्लीट पॉलिटिकल लाइजनर की भूमिका में आ गए। और इस बात को उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार भी किया कि जनता दल यूनाइटेड में केवल एक मालिक हैं नीतीश कुमार। हम तो केवल उनके मैनेजर हैं। और हम लोग मैनेजर का हिंदी मुंशी समझते हैं । तो यह तो उनका राजनीतिक चरित्र है । ललन सिंह का पूरा राजनीतिक अगर आप देखेंगे तो तो जनता दल यूनाइटेड में उनकी मात्र एक भूमिका है कि कैसे सभी पार्टियों को अस्थिर किया जाए। जिसमें कांग्रेस, राजद, लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की तो पूरी पार्टी को ही शामिल करा लिया गया। ऐसा कोई सगा नहीं जिसको इन्होंने ठगा नहीं ।
श्याम सुन्दर शरण ने कहा कि आज तेजस्वी प्रसाद के साथ गलबहियाँ मिलाकर घूम रहे हैं, यह भी सच है कि चारा घोटाले लालू परिवार को पूरी तरह से राजनीतिक अस्थिरता में धकेलने का काम किया और लालू प्रसाद का चुनावी राजनीति का अंत भी किया।
मित्रों एक और गंभीर बात। गंभीर इसलिए कह रहा हूं कि ललन सिंह जिस समाज से आते हैं मैं भी उसी समाज से आता हूं। और समाज में आज भी इस बात की पुरजोर चर्चा होती है कि आखिर तथाकथित बड़ी दुकान के मुंशी ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री जिनके बारे में नीतीश कुमार का कभी बयान आया था कि राबड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब मेरी रूचि इस पद पर नहीं रही। उन्होंने बहुत ही आपत्तिजनक और उचित टिप्पणी ललन सिंह के ऊपर व्यक्तिगत तौर पर की थी जिस पर उन्होंने मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था। फिर आखिर कौन सी सौदेबाजी हुई कि उन्होंने हुआ मुकदमा वापस ले लिया और लालू परिवार के चरणों में दंडवत हो गए । हालांकि समाज ने उनको कभी नेता नहीं माना परंतु समाज के होने के नाते इस बात का दर्द समाज को जरूर हुआ कि इस तरह की ओछी टिप्पणी कोई किसी पर कैसे कर सकता है। चुकी ललन सिंह कभी जननेता रहे भी नहीं हैं वह तो केवल और केवल ठेकेदार और दलालों से घिरे रहने वाले बाजारवाद और उगाही करने कराने का काम करने वाले पॉलिटिकल लाइनर रहे हैं। यह सच है कि अगर नीतीश कुमार का साया उनके ऊपर से हटा दिया जाए तो उनकी हैसियत मुखिया के चुनाव को भी जीत पाने की नहीं है। यह भी सच है कि वह एमपी का चुनाव तभी जीत पाए हैं जब जब उनको भारतीय जनता पार्टी का साथ मिला है।
उनके दोहरे चरित्र की गाथा यह भी है कि हम लोगों ने देखा और आप सभी मीडिया के साथियों ने भी देखा होगा कि 2010 में कैसे नीतीश कुमार के पेट का दांत निकाल रहे थे होम्योपैथ के डॉक्टर साहब और कांग्रेस से मिलकर के 2010 के चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह से नेतृत्व कर रहे थे। नतीजा सबके सामने आया और उनकी राजनीतिक हैसियत का सच भी लोगों के सामने जगजाहिर हो गया। पिछले 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बस रूप से लिख दिया कि उनकी राजनीतिक स्वीकार्यता कितनी है कि उनके लोकसभा क्षेत्र में जनता दल यूनाइटेड का एक भी उम्मीदवार अपनी सीट नहीं बचा पाया।
दूसरी ओर एक गंभीर स्थिति जो अब हम सब और आप सब भी महसूस कर रहे होंगे कि मुख्यमंत्री बहुत ही बुरी तरह से घिर गए हैं। होम्योपैथिक डॉक्टर साहब ने लालू प्रसाद से सुपारी ले रखा है मुख्यमंत्री को जॉर्ज फर्नांडिस बनाने का। जो कि आए दिन हम लोग मुख्यमंत्री के बयानों में और भाषणों के दौरान उनकी टिप्पणियों में महसूस कर रहे हैं । मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य की पूरी तरह से पड़ताल होनी चाहिए कि कहीं उनको कोई गलत दवा तो नहीं दी जा रही। कोई गहरी साजिश तो नहीं है पार्टी और सत्ता को हड़पने की। हम सबों ने बड़े-बड़े कई नेताओं के अंतिम क्षणों में देखा है सबसे करीब रहने वाले लोगों ने कैसे उनके साथ गाड़ी साजिश करके उनकी विरासत को हड़पने का काम किया है।
तो छोटी दुकान और दुकानदारों से नफरत करने वाले राष्ट्रीय रजनीगंधा अध्यक्ष का चरित्र रहा है ।
और अंत में महागठबंधन को भी आगाह कर देना चाहते हैं कि अभी भी वक्त है कि होशियार हो जाएं और जनता दलयू से पूछे हैं कि आखिर हरिवंश से उपसभापति के पद से इस्तीफा क्यों नहीं लिया गया। अगर उन्होंने देने से इनकार किया तो फिर उनकी सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश क्यों नहीं की गई। पार्टी से बाहर क्यों नहीं किया गया। देश में उदाहरण है कि सीपीएम के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष पर कार्रवाई करके कैसे उनको सीपीएम ने पार्टी से बाहर किया था।
जनता दल यूनाइटेड खुद दोहरे चरित्र में जीती है और दूसरे पर आरोप लगाती है।
हम पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमरेंद्र कुमार त्रिपाठी, राष्ट्रीय सदस्यता प्रभारी राजेश निराला, बिहार संगठन प्रभारी राजन सिद्दीकी, प्रदेश महासचिव रामविलास प्रसाद, युवा प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र शास्त्री, प्रदेश महासचिव आकाश कुमार, पटना नगर अध्यक्ष अनिल रजक आदि नेता प्रेस वार्ता में मौजूद थे ।