पटना । राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि जातीय आंकड़े के प्रकाशन के बाद से भाजपा नेताओं की तिलमिलाहट कुछ ज्यादा हीं बढ़ गई है। इसी वजह से उनके बयानों में विरोधाभास और असहजता दिखाई पड़ने लगी है। भाजपा के कई नेता तो बोलने के क्रम में भाषाई मर्यादा भी भूल जाते हैं। केन्द्रीय मंत्री से लेकर बिहार के पूर्व मंत्री और सांसद भी नुक्कड़ पर के लम्पटों की भाषा बोलने लगे हैं।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा नहीं चाहती कि पिछड़ों और दलितों को उनका हक और अधिकार मिले। आरएसएस द्वारा पूर्व के जनसंघ और आज के भाजपा के गठन का बुनियाद हीं पिछड़ा और दलित विरोध का रहा है। भारतीय संविधान लागू होने के समय से हीं समानता और आरक्षण का विरोध तत्कालीन जनसंघ द्वारा किया जाता रहा है।
व्यवहारिक तौर पर भी जब भी मौका आया जनसंघ और भाजपा ने पिछड़ों और दलितों के राह में रोड़ा बनने का काम किया। 1967 में जब पहली बार बिहार में गैर-कांग्रेसी सरकार बनने की स्थिति हुई तो गैर-कांग्रेसी दलों में सबसे बड़े घटक दल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जिसके विधायकों की संख्या 68 थी , के नेता कर्पूरी ठाकुर जी को मुख्यमंत्री बनने का 25 विधायकों वाली पार्टी जनसंघ द्वारा विरोध किया गया। फलत: महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी प्रकार 1977 में जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बन रही थी तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण बाबू जगजीवन राम जी को प्रधानमंत्री बनाना चाह रहे थे पर जनता पार्टी में शामिल पूर्व के जनसंघ घटक ने विरोध किया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। 1977 में ही बिहार में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने और बिहार में आरक्षण लागू किया तो पूर्व जनसंघ घटक के नेताओं ने साजिश कर कर्पूरी की सरकार को अपदस्थ कर दिया। 1990 में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा जब मंडल आयोग की अनुशंसा को लागू किया गया तो उसके विरोध में भाजपा के लोग न केवल सड़क पर उतर गए बल्कि मंडल के खिलाफ कमंडल लेकर निकल गए।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद , मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव जी के पहल पर जब बिहार की महागठबंधन सरकार द्वारा एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जातीय जनगणना कराकर उसके आंकड़े जारी कर दिए गए हैं तो भाजपा अपने संपोषित कुछ नेताओं द्वारा भ्रम पैदा करने की नापाक हरकत कर रही है।